Roshan sharma

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गुजर गया कब का

मुझे तलाश है जिस की गुज़र गया कब का 
मेरे वजूद में वो शख़्स मर गया कब का|

जो मुझ में रह के मुझे आईना दिखाता था 
मेरे दिल से वो चेहरा उतर गया कब का|

तिलिस्म टूट गया शब का मैं भी घर को आया
रुका था जिस के लिए वो घर गया कब का|

तुझे जो फ़ैसला देना है दे भी मुंसिफ़-ए-वक़्त 
वो मुझ पे सारे ही इल्ज़ाम लगा गया कब का|

न जाने कौन सा पल टूट कर बिखर जाए 
हमारे सब्र का पैमाना भर गया कब का|

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2 Comments

kapil sharma

24-May-2021 11:27 AM

bohut achche kavita likhi sir . apki kavita padh kar mann khush ho jata hai

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Roshan sharma

24-May-2021 12:24 PM

thnx

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