गुजर गया कब का
मुझे तलाश है जिस की गुज़र गया कब का
मेरे वजूद में वो शख़्स मर गया कब का|
जो मुझ में रह के मुझे आईना दिखाता था
मेरे दिल से वो चेहरा उतर गया कब का|
तिलिस्म टूट गया शब का मैं भी घर को आया
रुका था जिस के लिए वो घर गया कब का|
तुझे जो फ़ैसला देना है दे भी मुंसिफ़-ए-वक़्त
वो मुझ पे सारे ही इल्ज़ाम लगा गया कब का|
न जाने कौन सा पल टूट कर बिखर जाए
हमारे सब्र का पैमाना भर गया कब का|
kapil sharma
24-May-2021 11:27 AM
bohut achche kavita likhi sir . apki kavita padh kar mann khush ho jata hai
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Roshan sharma
24-May-2021 12:24 PM
thnx
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